Wednesday, 18 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 5 : Santo Ek Acharaj Bhoun Bhari !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५ : संतो अचरज एक भौ भारी ! 

#शब्द : ५ :

संतो अचरज एक भौं भारी, कहों तो को पतियाई : १
एकै पुरुष एक है नारी, ताकर करहु विचारा : २
एकै अण्ड सकल चौरासी, भरम भूला संसारा : ३
एकै नारी जाल पसारा, जग में भया अंदेशा : ४
खोजत खोजत काहु अन्त न पाया, ब्रह्मा विष्णु महेशा : ५
नाग फांस लिये घट भीतर, मूसेनि सब जग झारी : ६
ज्ञान खड़ग बिनु सब जग जूझै, पकरि न काहू पाई : ७
आपै मूल फूल फुलवारी, आपुहि चुनि चुनि खाई : ८
कहहि कबीर तेई जन उबरे, जेहि गुरु लियो जगाई : ९

#शब्द_अर्थ : 

पतियाई = विश्वास ! अण्ड = संसार, शिव श्रृष्टि ! नारी = मन की वासना कामना , इच्छा, तृष्णा ! अंदेशा = चिंता, आशंका ! अन्त = भेद ! नाग फांस = नागपाश , मोह का बंधन ! मुसेनि = झूठा , गलत , चुराना ! खड़ग = तलवार ! जूझै = लड़ना !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो तुम जिस श्रृष्टि का निर्माता ईश्वर खोजते हो उसे पाने उसकी मानगढ़त फोटो , मूर्ति बना कर रात दिन पूजते हो वो तुम्हारे भीतर बाहर श्रृष्टि में चराचर कण कण में स्वयं मूल फूल फुलवारी के रूप में शिव श्रृष्टि , संसार बन पसारा है उसे फोटो मूर्ति में धुंडने की जरूरत नहीं उसे अपने अंतरमन में खोजो ! 

उसके। स्वरूप का दर्शन ज्ञान चक्षु से ही होंगे सामान्य नयन से नही और वो दर्शन ज्ञान मैं देता हूं ! मन में जो मोह माया का बंधन नागपाश की पड़ा है पहले उसे मुक्त करो और जानो की वही चेतन राम जो अजर अमर ज्ञान ज्योति है वही सब बनाती है , बनाती है और मिटाती है ! 

इसलिए मोह माया इच्छा तृष्णा के नागपाश से मुक्त हो कर स्वरूप को जानो तो बार बार जन्म मृत्यु सुख दुख के मोह चक्र से छुटकारा होगा, जैसे मैं सभी भय मुक्त शंका मुक्त हूं और चेतन राम के नित दर्शन करता हूं तुम भी करोगे ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म वो धर्मात्मा कबीर ने बताया हुवा सत्यधर्म है ! धर्मात्मा कबीर सत्य वक्ता है जो उनके बताए मार्ग कबीरवाणी पवित्र बीजक की राह पर चलेगा उसका मोक्ष होना निश्चित है और संसार में दुख मुक्ति यही मार्ग है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान , शिवश्रृष्टि

Tuesday, 17 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 4 : Santo Dekhat Jag Bouraana !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा बोध : #शब्द : ४ :  संतो देखत जग बौराना !

#शब्द : ४ : 

संतो देखत जग बौराना : १
साँच कहों तो मारन धावै, झूठे जग पति याना : २
नेमी देखा धर्मी देखा, प्रात करे अस्नाना : ३
आतम मारि पषाणहि पूजे, उनमें किछउ न ज्ञाना : ४
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ें कितेब कुराना : ५
कै मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना : ६
आसन मारि डिम्ब धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना : ७
पीतर पथार पूजन लागे, तीरथ गर्भ भुलाना : ८
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमान : ९
साखी शब्द गावत भूले, आतम खबरि न जाना : १० 
हिन्दू  कहैं मोहिं राम पियारा, तुरूक कहैं रहिमाना : ११
आपुस में दोउ लरि लरि मूये, मर्म न काहु जाना : १२
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना : १३
गुरु सहित शिष्य सब बूड़े, अन्त काल पछिताना : १४
कहहि कबीर सुनो हो संतो, ई सब भरम भुलाना : १५
केतिक कहों कहा नहिं माने, सहजे सहज समाना : १६

#शब्द_अर्थ : 

पतियाना = विश्वास करना ! पीर = मुस्लिमोके गुरु !  राम  = चेतन राम , राजा राम ! तुरक = तुर्की मुस्लिम धर्म ! ओंलिया = तपस्वी ! मुरीद = शिष्य ! तदबीर = युक्ति ! उहै = भ्रमपूर्ण ! डिम्ब = दंभ , दिखावा ! गुमान = घमंड ! रहिमाना =  दयालु , चेतन राम ! सहजे सहज = सरलता से ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर कहते हैं हे संतो मैने  देखा लोग धर्म जानते नही और अधर्म के पिछे  पागलों की तरह दीवाने हुवे है ! मैं सत्य कहता हू तो लोग मुझे गाली देते है मारने दौड़ते है और अधर्म को धर्म बताने वाले उन धर्मो के ठेकेदार पंडे मौलवी की झूठी बातो पर विश्वास रखते है ! मैंने इन पाखंडी पांडे पूजारी मौलवी को देखा है सबेरे उठकर नहा धोकर तयार होते है , तिलक चंदन टोपी माला गमछा आदि अपने अपने धर्म के आवरण धारण कर सबेरे सबेरे नए झूठ , नए फरेब ,  अल्ला ईश्वर के नाम से जीव हत्या के लिए तैयार रहते है ! 

देवी देवता की पत्थर पूजा और कुरान का हवाला देकर प्राणी हत्या दोनो अधर्म है ! स्वर्ग नरक , अप्सरा हूरें का भ्रम  फैलाए ये लोगों ने बड़े बड़े अपने शिष्य के हुजुम अखाड़े अड्डे बनाए है जिसके माध्यम से झूठा  मुर्खोंका अंध विश्वास भविष्य बताने का धंधा , भूत प्रेत उतरने का धंधा फंदा , संकट मोचन के लिए पूजा असत्य नारायण होम हवन आदि विवीध मार्ग इन लोगों ने भोले भाले आम लोगोंको ठगने के लिऐ बनाए है !  उपारसे ये लोग बड़े घमंडी भी होते है अपने अज्ञान को ये लोग ज्ञान कहते है ! 

कबीर साहेब कहते है हिन्दू राजा राम  को ईश्वर का अवतार मानते है और मुस्लिम मोहम्मद को अल्लाह का प्रेषित ! पर कबीर साहेब न अवतार को मानते है न कोइ  ईश्वर का दूत हैं , न ईश्वरी किताब की बतोंको वे इसे कोरी कल्पना मानते हैं ! कबीर साहेब चेतन राम मानते है , अवतारी राजा राम नही और बताते है चेतन राम घट घट है , कण कण में है समस्त संसार व्यापी है ! उसने मानव में विवेक , परख करने की शक्ति दी है उसका उपयोग करो ऐसा कबीर साहेब कहते है !  

दोनो विदेशी धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म के लोगोके के बहकावे में मत आवो और अपना मूलभारतीय हिंदूधर्म का पालन करो यही बात कबीर साहेब कहते है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

Sunday, 15 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 2 : Santo Jaagat Nind na Kije !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : २

#शब्द : २ : संतो जागत नींद न कीजै : १

काल न खाय कल्प नहिं ब्यापै, देह जरा नहिं छीजै : २
उलटी गंग समुद्रहि सोखै, शशि औ सूरहि ग्रासै : ३
नौग्रह मारि रोगिया बैठो, जल में बिंब प्रकासै : ४
बीनु चरणन को दहुदिश धावै, बिनु  लोचन जग सूझई : ५
संशय उलटी सिंह को ग्रासे, ई अचरज कोइ बूजै : ६
औंधे घड़ा नहीं जल बूडे, सीधे सो जल भरिया : ७
जेहि कारण नर भिन्न भिन्न करें, सो गुरु प्रसादै तरिया : ८
बैठी गुफा में सब जग देखे, बाहर किछउ  न सूझे : ९
उलटा बाण पारिधिहि लागै, सूरा होय सो बुझई : १०
गायन कहै कबहुं नहिं गावै, अनबोला नित गावै : ११
नटवट बाजा पेखनी पेखै, अनहद हेत बढ़ावै : १२
कथनी बदनी निजु कै जोवै, ई सब अकथ कहानी : १३
धरती उलटि अकाशहि बेधई, ई पुरुषन की बानी : १४
बिना पियाला अमृत अंचवै, नदी नीर भरि राखै : १५
कहहिं कबीर सो युग युग जीवै, जो राम सुधारस चाखै : १६

#शब्द_अर्थ : 

कल्प = काल्पनिक अवधि समय ! देह = स्वरूप! गंग = गंगा ,  सुशमा नाड़ी ! समुद्र = सागर , शरीर !  शशि = चन्द , नाक में बहने वाली धारा नाड़ी ! सूरहि = नाक की दहिनी धारा नाड़ी !  नौग्रह =  पांच इन्द्रिय , चार अंतकरण , ग्रह !  रोगिया = योगी ! बिम्ब = छाया ! संशय = अज्ञान ! सिंह = जीव ! प्रसादईं =  कृपा से ! पारिधीहि = शिकारी , साधक , योगी ! सूरा = वीर !  गायन = गाने वाले !  अनबोला = चेतन राम ! नटवट = नटखट  ! बाजा = सिंगी , तुतारी !  पेखनी = मुद्रा ! अनहद  = अनाहत नाद ! हेत = प्रेम! कथनी = बात ! बदनी =  शर्त , हटग्रह ! जोवै = देखते है ! राम सुधा रस = चेतन राम स्वरूप आनंद , निर्वाण का सुख ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो जागृत रहो , अज्ञान को अज्ञान और ज्ञान को ज्ञान कहो , अंध विश्वास से दूर रहो , भ्रम से दूर रहो ! न वैदिक धर्म होमहवन , पूजापाठ , देव पूजा से कुछ हासिल होता है ना मनगढ़ंत बड़बोले योगिक क्रिया से कुछ हासिल होता है ! देह को दुख देकर क्या होगा ? क्या ये जीवन का उद्देश है ? नही ! 

योग से ईश्वर प्राप्ति यह एक कल्पना मात्र है जिस प्रकार वैदिक अग्निहोत्र !  अपने देह को जागृति से समझो ! यही वो चेतन राम है जिसे कोई काल कल्प का बंधन नही वो अमर अजर सदा के लिए है उसे जानो न उसे यज्ञ  ना योग  से जाना जा सकता है केवल शुद्ध मन , निर्मल स्वभाव , पाप रहित जीवन   , दिनचर्या से ही आत्म बोध चेतन राम के दर्शन होंगे !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

Thursday, 29 November 2018

माझा मित्र अनिल टंक
मॅट्रिक नांतर मी सावनेर ला शिकायला गेलो . मोठं भाऊ श्रीकांत तेव्हा सावनेर तहिसल ऑफिस मध्ये नाजीर म्हणून कामाला होता . १९६६ मंधे नव्याने स्थापन झालेल्या आर्टस् अँड कॉमर्स कॉलेज मध्ये मी बी कॉम फर्स्ट इयर ला ऍडमिशन घेतले . त्या कॉलेज चे प्राचार्य डॉक्टर र त्र गोसेवाडे श्रीकांत दादा चे परिचितांचं नव्हते तर ते आमच्या गाव पवनी चे जावई सुद्धा होते . गोसेवाडे सरांचे सासरे म्हजें आज जे पावनीला प्रसिद्ध लक्समि - रामा संस्कृतक हाल पवनी बाजार जवळ आहे त्याचे मालक . पूर्वी यांचे कलाराचे मोठे दुकान बाजार जवळच होते . दोन माळ्याची हवेली , खाली पुढे दुकान आणि वर पाढीमागे रहाणे . शेती , साधन , प्रतिष्टीत कुटुंब म्हणून ओळखले जात . जातीने कलार म्हणून कलाराचे दुकान म्हणूनच परिचय .
गोसेवाडे सरांचे पवनी येणे जाणे राहत असे . सर पूर्वी धरमपेठ कॉलेज मध्ये इकॉनॉमिक्स चे प्राध्यापक होते , पुढे डॉक्टरेट करून आता ते सावनेर च्या नवीन आर्ट्स आणि कॉमर्स कॉलेज चे प्राचार्य म्हणून रुजू झाले होते ,गोरेपान , उंच , मजबूत बांधा , उन्नत माथा , रुबाबदार चेहरा असे त्यांचे व्यक्तिमत्व होते तर इकॉनॉमिक्स शिकविण्यात त्यांचं हातखंडा होता .
१९६६-६९ असे तीन वर्ष मी सावनेर ला श्रीकांत दादा बरोबर राहून शिकलो . दादाचे १९६६ मध्ये लग्न झाले होते वाहिनी नागपूर , इतवारी च्या सोमकुंवर कुटुंबातील . गरीब पण सोज्वळ कुटुंब . मी बरेचदा वाहिनी बरोबर त्यांच्या माहेरला गेलो . उत्तमोतला उत्तम पाहुणचार , उठबस करीत असत . वाहिनी चा भाऊ रेल्वेत गॅंग मन , मामा सुद्धा गॅंग मन . दोघेही सज्जन आणि वाहिनीची वाहिनी तर अतिशय चांगली . वाहिनी ला एक लहान बहीण होती . महा बडबडी .
दादा वहिनींनी मला मुलं प्रमाणेच सांभाळले . त्यांना एक मुलगी झाली . रेखा तिचे नाव . अतिशय लाडात वाढली . ते दिवस फारच रम्य होते !
सावनेर चे नौकरदार , चांगले लोक जे बाहेरून आले होते ते सावजी च्या चाळीत राहायचे . हि चाल सावनेर रेल्वे स्टेशन च्या ठीक सामने होती . तीन साईड ला सहा सहा ची ३० -३५ फुटी तीन खोल्याची परसात चाल . माहित चांगला ६० -७० चौरस फुटाचा ग्राउंड एका कोपऱ्याला विहीर आणि चाळीचे संडास .दोन्ही बाजूला छोट्या गेट .चाळीतले पोर ग्राउंड मध्ये बॅडमिंटन खेडयाची . चाल मालक सावजी चा सावनेर मध्ये मोठा दरारा होता . त्याची खूप प्रॉपर्टी होती . तो मोट्या कांब मिश्या ठेवायचा आणि मिशीला पीळ देत राहत असे . आमच्या चाळीत आम्ही , तहसील आफिस चा कुलकर्णी शापायी , टेलेफोन खात्यातील धांडे , अनिल टंक चे आई वडील , बहीण भाऊ , कडू पाटील चे शिकणारे मुलं , त्यांची पत्नी कडू पाटलीन बाई , त्यांचा नौकर , रेल्वे चे बाबू मेश्राम आमच्या कॉलेज थे प्राध्यापक इसाक , तिवारी , ठाकरे राहत असत .
ते दिवस लाल गुंजी चे होते . कंट्रोल मध्ये लाल गुंजी , अमेरिकेन गहू भेटत होते , खूप दुष्काळ पडला होता . इंदिरा गांधींनी तेव्हा लाल गुंजी , अमेरिकन , गहू , मका आयात करून लोकांना खायला घातले . असे ते जिकरीचे दिवस !
अनिल टंक चे वडील लाधुभाई रेड आकसायीड चे पुरवठादार , मायनींग चा पट्टा होता . आर्थिक सुस्थिती .अनिल चे घर आमचे घर आमने सामने , तो त्याचे वडील , आई , एक मोठा भाऊ एक लहान भाऊ व सरावात लहान बहीण . ते मूळचे गुजराती , आईला बा आणि वडिलांना बापू म्हणत . बापू लाधुभाई रेड आकसायीड चे रेल्वे ला पुरवठादार , खान पट्टा असेलेले. मी सुद्धा त्यांना बापू , बा म्हणायचो . मोठा भाऊ रमेश नुकताच खापरखेड्याला बी एस्सी करून लागला होता , अनिल , लहान भाऊ विनोद , लहान बहीण वनिता आठवीत शिकणारी असे हे त्यांचे सुखी कुटुंब ! २४ तासातून १८ तास अनिल आणि मी सोबत सोबतच . तो सुद्धा माझ्याच वर्गात . कॉलेज , फिरणे , मार्केट सर्व साथ साथ .
कॉलेज ला मी फार ऍक्टिव्ह होतो , वर्ग प्रतिनिधी म्हणून निवडून यायचा . माझे तेव्हाचे अजून काही कॉलेज मित्र होते ते म्हणजे विजय नाईक , मनोहर मोवाडे , गांधी . पण राऊत ,अनिल , विजय , मनोहर म्हणजे खास मैत्री आम्ही त्यांच्या शेतीवर जायचे , हुरडा खायचे , दोन सायकिली वर चार जण अशी आमची लांब लांब रपेट असायची . हे सर्व मित्र सधन , श्रीमंत घर ची . माझा अजून एक मित्र होता तो म्हणजे कापसे तो इसाक सरांना उलटे करून कसाई म्हणायचं . जवळ जवळ सर्व गाव मला आता कॉलेज चा होतकरू विध्यार्थी म्हणून ओळखत असे . गोसेवाडे सर म्हणायचे राऊत पोस्ट ग्रॅजुएट होऊन या याच कॉलेज ला प्राध्यापक व्हा . इकॉनॉमिक्स मध्ये मला जास्त गुणामुळे पारितोषिक मिळत असे . पुढे मी बी कॉम फायनल साठी नेवजाबाई हितकारिणी कॉलेज , ब्राह्म्हपुरी ला गेलो , एम कॉम साठी नागपूर ला जि एस कॉमर्स कॉलेज , नागपूर ला आलो , दुसऱ्या वर्षी मुंबई ला रेल्वे ऑडिट आफिस मध्ये कामाला लागलो . तेव्हा पासून जे सावनेर सुटले ते सुटले . सावनेर ला जाऊ शकलो नाही . वनिताचे नागपूरla लग्न झाले हाल वर तेव्हा पत्रिका अली होती , अनिल चे लग्न रायपूर ला झाले तेव्हा सहकुटुंब मी रायपूर ला गेलो होता . नंतर संपर्क झाला नाही . २००२ मध्ये मी त्याला पात्र लिहले त्याच्या बायकोने म्हणजे वहिनींनी लिहले ते बरेच वर्षय पूर्वी नागपूर सावनेर रोड असिसिडेन्ट मध्ये मरण पावले आणि त्यांना मुली आहेत , मोठ्या मुलीच्या लागणी नंतर पत्रिका आली . घराचा माणूस निघून गेला कि कशी वाईट अवस्था रडत रडत सांगितले तेव्हा मलाच रडू यायला लागले दोन हजार रुपये मी त्यांना दिले , अधिक असते तर अधिक दिले असते . आता मी स्वेच्छा निवृत्ती घेतली होती .
दुःख एवढाच , मित्र अनिल , मी फार काही करू शकलो नाही !
नेटिविस्ट डी डी राऊत

Wednesday, 28 November 2018

ही माझी पवनी नगरी !
माझी पवनी नगरी , ही माझी सुंदर पवनी नगरी फार पुरातन आहे ती बुद्ध काळात होती , बुद्धा पूर्वी होती ,बुद्ध नंतर आज सुद्धा आहे ! बुध्दाच्या काळात इथे विहार बांधले गेले ,पवनी च्या महा जनपदाने ते बांधले .नालंदा , तक्षशीला सारखे येथे मोठे विद्यापीठ होते , बहुदा पदमपाणी , पद्मावती असे त्या वेळी नगरीचे नाव होते आणि नगरी च्या नावानेच विश्व विद्यालय होते . माझी नागरी पवनी एक महा जानपद असून बुद्ध पूर्वीच्या गं राज्यातील एक महत्वाचे गण राज्य होते . नागवंशी शिवाचे गण राज्य!
पवनी नागरी आज आहे त्या पेक्षा मोठी वसलेली असावी असे वाटते . आजची वाही , बेताला , शेलारी , खापरी डोंगरी , शेळी हा वैनगंगा नदीचा पूर्वेचा पत्ता पुरातन पवनी नगरीत येत असावा . या परिसरात , ताम्र पत्रे , खजिना , जमा , मुर्त्या , स्तूप , विहार , विद्या पिठाचे अवशेष दिसतात .
आज असलेला किल्ला व त्यातील भाग मोखाडा मोखाडा आजही सुस्थितीत , आखीव , रेखीव पद्धतीने बसविला दिसतो . आजचे तलाव बाल समुद्र , भाई तलाव , गाटा तलाव , चंडकाई तलाव , कुऱहाडा तलाव सर्व एके काळी सुंदर कमल पुष्पांनी भरलेले असत . हजारो पांढरे , गुलाबी, निळे , लाल कमळे बघून जीव हरखून जात असे .
माझ्या बालपणी आम्ही शुक्रवारी वार्डात राहत असू . किल्ल्याच्या अलीकडील सर्वात महत्वाची वस्ती . तिथे राहणारे सुद्धा लोक घरंदाज . घोडेस्वार , गजभिये , खापर्डे , खोब्रागडे , रामटेके , गोवर्धन , कामळे , मोटघरे , लोखंडे , नंदागवली , भाम्बोरे मधात राऊत नंतर मेश्राम , गजभिये , रामटेके अशी वस्ती म्हणजे शुक्रवारी वार्ड , लागूनच तेली मोहल्ला , एक दोन सुतारांचे घर , तीन चार माळी समाजाच्या भाजीपाला वाड्या, त्या नंतर कोष्टी मोहल्ला ,तोढे कुणबी , पारधी , चांभार , धनगर , खाटीक , लोहार अस्या वेवसायचे लोक वस्ती भाई टाकावा जवळ मुस्लिम मोहल्ला , नंतर परिटांचे एक दोन घर , काही कोमटी , दोन चार ब्राह्मण घर दीक्षित , वेव्हारे , देशपांडे . अनेक कडे शेती . तांदूळ, काठानी माल व्यापारावर शुक्रवारी तील महाराचा एकाधिकार ! महारातीलच काही बुंकर , धोतर , नऊवारी विणणारे , शेतकरी सधन. तट्टे , टोपली विणणारे पाच दहा कुटुंबाची टाळावा जवळ वस्ती त्यांचे जवळ कोळी समाजाचा बरेच घर असा हा पवनी गावचा वस्ती पसारा .
मी माझे बाल पणी एकटा तास अन तास पावनीच्या किल्ल्याच्या बुरुजाला टेकून सायंकाळचे आकाशातील बदलते रंग , बदलते ढग आकार बसून नहाळीत असे . सायंकाळी थेट बेटाला , वाही पर्यन्त फिरायला जात असे तर कधी आमराई , शेलारी नाल्या पर्यंत फिरून येई . कधी चंडकाई तर कधी घोडे घाट , पाते घाट , दिवाण घाट असे रोज चे फिरणे असे . तास दोन तास असे फिरण्यात जात आणि मग कधी बाळ समुद्रावरच्या बंधाऱ्यावर गवता वर लेटून नाही तर घाटा वरील राम मंदिराच्या विहिरीवर बसून किल्ला नाव्हळीत कसा वेळ जाई ते काळात नसे !
जसा जसा मोठा झालो तस तसा मी माझे गाव पवनी च्या अधिकाधिक प्रेमात पडलं गेलो . वनराई तील मोठा तलाव , पेरू संत्र्याचा बगीचा , लहान महादेव टेकडी असे परिसर वन भोजनाचे असायचे , शाळेच्या सहली जात . नदी ची सुंदर पांढरी वाळू , रेती , किती तरी रेतीचे महाल , किल्ले बनवून आणि नदी पात्रातील खरबूज , टरबूज चे शेत पेठे घालत पोहता येत नसले तरी उथड पाण्यात आडवे पडून घालविले तेव्हा नदी पात्र नितळ शुद्ध पाने वाहत असे खालचे दगड , मसोड्या , हाथ , स्पस्ट दिसत . असे माझे सुंदर गाव , सुंदर नगरी पवनी काही दिवसांनी माझ्याच नातेवाईकांनी म्हणजे स्वात्यंत्र सेनानी मन्साराम राऊत आणि गणपतराव खापर्डे यांनी बाल समुद्रा जवळ राम मंदिर टेकडी जवळ बुद्ध कालीन विहार शोधून काढले , सांची स्तूप पेक्षा मोठे ! आहे ना माझ्या पवनी नगरीची कमाल !
मी नौकरी निमित्य मुंबई ला आलो , कल्याण ला राहिलो पण सर्व लक्ष पवनी नागरी कडे , तिथे काय झाले ,काय चालले आहे. कधी वाटायचे नौकरी सोडून गावी जावे गाव सेवेला वाहून घ्यावे , गावाचा भाजीपाला , सुद्धा हवा , जंगल , वनराई मस्त फिरावे , ताज्या , भाजल्या मस्त मच्छी , भिरभुश्या , कारवाड्या, बारीक झिंगे , काटवे ,बोध , शिंगरा, वाघरा,तंबू , चाचे आणि चवळीची भाजी . आजून काय पाहिजे ? सोबत सिंगाडे , बोलांदे ,फातयी ,फुत्या , कचर , भिसी , चारोडी ,टेम्बार,देशी आंबे , खिरणी ओली , वळली आहेच ! ही माझी पवनी नगरी !
मंदिरांची नगरी , तलावांची नगरी , नदीची नगरी , विद्येची नगरी , स्तूपांची नगरी , विहाराची नगरी , जंगलाची नगरी , वाघाची नगरी , महादेवाची नगरी, नाग महा जनपदांची गणांची नगरी. कमळाची नगरी , पद्मावती , पदमपाणी पवनी !
आम्ही पवनी चे राऊत पूर्वी बहुदा हिंदू नाग वंशी असावे , पुढे बौद्ध झाले असावे , मध्यंतरीच्या काळात धर्मात्मा कबीर , बाबा फरीद यांचे मुराद राहिले असे दिसते . आज आमच्या घरी नाग मंदार समाधी आहे , नाग पूजा आहे , कबीर , बाबा फरीद सेवा आहे . आम्ही हिंदू आहोत . आमच्या घर जवळ खोदकाम केले तर ताम्र पत्रे , जमा मिळते , पैसे, मणी मिळतात . राऊत म्हणजे राज सैन्य . नाग मंदार या गण राज्याच्या , महा गण पदाचे आम्ही एक प्रमुख गण असावेत म्हणून आम्ही सर्व राऊत नाग मंदाराची पूजा करतो , नाग ठाणे घरी आहे ,लोक लहान मुलांसाठी राखोंडी घेऊन जात असत . आमची कुल देवता नाग मंदार आहे. आमचा पूर्वज नाग मंदार आहे .कबीरांना मानतो , बाबा फरीद मानतो !
आम्ही राज कुळातील असोन किव्हा नासोन पण आम्ही नाग वंशी आहोत , नाग परंपरा जपतो , नाग पंचमी , नाग मंदार पूजा हि आमची परंपरा आहे ! पवनी हि मात्र नाग वंशी गण राज्याची राजधानी , विद्येचे माहेरघर आणि सुखी लोकांची नगरी होती हे मात्र खरे !
नेटिविस्ट डी डी राऊत

Wednesday, 8 August 2018

९ अगस्त , २०१८ ,
विश्व नेटिव दिवस

जलावोगे तो राख बनूँगा
दफनावोगे तो खाक बनूँगा
फेंकोगे गर कूड़े में मुझे तो
नेटिविसम की खाद बनूँगा !

चाहे राख बनु या खाक बनु
उपजावु आग होगी मेरी
अंगारो पे चला जला हूँ मैं
फीनिक्स सी उडान है मेरी।

नेटिविज़्म की ज्योत है ये
सूरज से भी तेज आभा होगी
जहा ना रवि, कवी पुहचेगा
वो हर दर, मेरा दर होगा।

अलख जगाई नेटिविज़्म की
मैं मिटूंगा पर नहीं मिटेगा ये
विश्व में जहा मानव होगा
मै नेटिव अब ये नारा होगा।

नेटिविस्ट राउत का जन्मदिन
नेटिविस्ट दिवस माना जाएगा
९ अगस्त से २४ अगस्त अब
विश्व नेटिविज़्म पखवारा होगा।

#जनसेनानी #Jansenani कल्याण
९ अगस्त , २०१८ ,
#विश्व_नेटिव_दिवस